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आत्मनिर्भर बागवानी योजना

आत्मनिर्भर बागवानी योजना

प्रस्तावना

भारत कृषि प्रधान देश है, जहाँ लगभग 60% जनसंख्या कृषि एवं उससे सम्बंधित गतिविधियों पर निर्भर है। बागवानी कृषि का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो फलों, फूलों, सब्जियों, मसालों एवं औषधीय पौधों की खेती को सम्मिलित करता है। बागवानी न केवल कृषि की विविधता बढ़ाता है, बल्कि किसानों की आमदनी को भी सुदृढ़ करता है। केंद्र और राज्य सरकारें समय-समय पर किसानों को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न योजनाएँ संचालित करती रही हैं। ऐसी ही एक महत्त्वपूर्ण पहल है “आत्मनिर्भर बागवानी योजना”। इस योजना का उद्देश्य किसानों को आधुनिक तकनीकों से लैस कर, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना एवं बागवानी की उत्पादन-क्षमता एवं आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना है।

1. योजना का परिचय

“आत्मनिर्भर बागवानी योजना” कृषि मंत्रालय के तहत बागवानी विकास बोर्ड तथा संबंधित राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से चलाई जा रही एक बहुआयामी योजना है। यह योजना मुख्य रूप से छोटे एवं सीमांत किसानों, महिला किसान उद्यमियों तथा युवा वर्ग के बागवान उम्मीदवारों को लक्ष्य बनाकर तैयार की गई है। इस योजना के तहत उन्हें वित्तीय सहायता, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, प्रशिक्षण एवं विपणन सहायता प्राप्त होती है।

2. उद्देश्य

  1. किसानों को आत्मनिर्भर बनाकर उनकी आजीविका में सुधार।
  2. पारंपरिक कृषि से बागवानी की ओर संक्रमण को बढ़ावा।
  3. नवीनतम बागवानी तकनीकों एवं वैज्ञानिक तरीकों का प्रचार-प्रसार।
  4. बागवानी उत्पादों की गुणवत्ता एवं पैदावार में वृद्धि।
  5. किसानों के उत्पादों के लिए बेहतर बाज़ार एवं मूल्य सुनिश्चित करना।

3. योजना के प्रमुख घटक

  1. वित्तीय सहायता (Subsidy)
    • नवप्रवर्तनशील बागवानी गतिविधियों के लिए 30% से 50% तक की सब्सिडी।
    • ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग, ग्रीनहाउस एवं पॉलीहाउस निर्माता संरचनाओं पर विशेष अनुदान।
  2. प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास
    • किसान प्रशिक्षण केन्द्रों पर नियमित कार्यशालाएँ।
    • आधुनिक बागवानी तकनीकों जैसे कि ग्रीनहाउस, पॉलीहाउस, फ्लोयिंग कल्चर, वर्टिकल फार्मिंग इत्यादि पर विशेष पाठ्यक्रम।
  3. तकनीकी सहायता एवं अनुसंधान
    • कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान केन्द्रों के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में योग्य बागवानों को तकनीकी सहयोग।
    • भूमि परीक्षण, जल गुणवत्ता परीक्षण एवं पोषक तत्व प्रबंधन की सेवाएँ।
  4. बाजार समर्थन एवं विपणन
    • ई-नाम (e-NAM) प्लेटफॉर्म के माध्यम से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुँच।
    • किसान उत्पादक संगठन (FPO) एवं सामूहिक विपणन समूह बनाए जाने को प्रोत्साहन।
  5. कृषक क्रेडिट कार्ड स्कीम (KCC)
    • कम ब्याज दर पर आसान क़िस्तों में ऋण सुविधा।
  6. बीमा संरक्षण
    • फसल बीमा योजनाओं से जुड़कर प्राकृतिक आपदाओं एवं बाजार जोखिमों से रक्षा।

4. पात्रता मानदण्ड

  1. योजना के लिए आवेदनकर्ता भारत का स्थाई नागरिक होना चाहिए।
  2. आवेदक की आयु 18 से 60 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
  3. आवेदक सीमांत या लघु किसान श्रेणी में आते हों या नवोदित युवा बागवान हों।
  4. बागवानी योग्य जमीन का स्वामित्व या पट्टा प्रमाणपत्र।
  5. भूमि परीक्षण रिपोर्ट।
  6. संबंधित जिला कृषि विभाग द्वारा जारी पहचान-पत्र।

5. आवेदन प्रक्रिया

  1. ऑनलाइन पंजीकरण
    • राज्य बागवानी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ।
    • स्वयं को रजिस्टर करें और आवश्यक कागजात अपलोड करें।
  2. दस्तावेज़ सत्यापन
    • जिला स्तर पर गठित समिति द्वारा दस्तावेज़ों की जांच एवं मान्यता।
  3. क्षेत्रीय निरीक्षण
    • तकनीकी अधिकारियों द्वारा खेत का मूल्यांकन।
  4. स्वीकृति एवं अनुबंध
    • योजना के अंतर्गत अनुदान की स्वीकृति पत्र प्राप्त करना।
    • अनुदान एवं पदोन्नति की शर्तों पर हस्ताक्षर करने हेतु कृषि विभाग के साथ अनुबंध।
  5. अनुदान जारी
    • कार्य आरंभ होने पर किस्तों में अनुदान की धनराशि जारी।

6. योजना के लाभ

  1. आर्थिक समृद्धि
    • बागवानी से प्रति हेक्टेयर आय में वृद्धि।
  2. तकनीकी सशक्तिकरण
    • वैज्ञानिक तरीकों एवं नई-नई तकनीकों का प्रयोग।
  3. बाजार तक पहुँच
    • ई-नाम एवं एफपीओ चैनलों के माध्यम से मूल्य निश्चितता।
  4. रोग-प्रतिरोधक क्षमता
    • उन्नत किस्मों एवं गुणवत्ता मानकों से पैदावार में सुधार।
  5. पर्यावरण संरक्षण
    • ड्रिप इरिगेशन व मल्च तकनीकों से जल संरक्षण एवं मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि।

7. चुनौतियाँ एवं समाधान

चुनौतियाँ संभावित समाधान
सीमित जागरूकता समय-समय पर प्रशिक्षण एवं जागरूकता अभियान
प्रारंभिक पूंजी की कमी किसान क्रेडिट कार्ड एवं स्थानीय बैंकों के ऋण प्रावधान
बाजार अस्थिरता ई-नाम प्लेटफॉर्म एवं मू्ल्य आश्वासन कार्यक्रम
जल-संसाधन की कमी आधुनिक सिंचाई तकनीकों का प्रचार
तकनीकी समझ की कमी कृषि विश्वविद्यालयों एवं विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन

8. राज्य स्तरीय उदाहरण

  1. केरल: ग्रीनहाउस शैली की मसाला खेती में आत्मनिर्भरता हासिल की।
  2. महाराष्ट्र: अंगूर व कीवी के उत्पादन में उन्नत तकनीक अपनाकर निर्यात बढ़ाया।
  3. उत्तराखंड: हिमालयी फलों (जैसे बेर, आड़ू, चेरी) की उन्नत किस्मों की सफल खेती।

9. महत्व एवं दीर्घकालिक परिणाम

  • आत्मनिर्भर बागवानी योजना से किसानों की जीवन-स्तर में सुधार के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
  • बागवानी क्षेत्र में निर्यात संवर्धन से विदेशी मुद्रा अर्जन की संभावनाएँ बढ़ेंगी।
  • पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जैव विविधता में वृद्धि होगी।

10. निष्कर्ष

आत्मनिर्भर बागवानी योजना किसानों को तकनीकी, वित्तीय एवं विपणन संबंधी सहायता प्रदान करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का समग्र प्रयास है। यह योजना न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाती है, बल्कि किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों से जोड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करती है। यदि समय पर प्रशिक्षण, तकनीकी मार्गदर्शन एवं वित्तीय सहायता सुचारू रूप से मिलती रही, तो आत्मनिर्भर बागवानी का लक्ष्य अवश्य साकार होगा और देश की कृषि-आर्थिक तस्वीर नया आयाम प्राप्त करेगी।

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